Header Ads

kangra fort | कांगड़ा किला का इतिहास | कांगड़ा दुर्ग

Kangra fort - ये हिमालय की पर्वत श्रीखंला अपने आप मे ही एक प्राकृतिक किला है ये पहाड़ ही इतने दुर्गम है की इनको देख कर किसी बी आक्रमणकारी का हौसला टूट जाये ओर फिर उस पर बना ये शिवालिक की दीवारों के किला ये इतना महतबपुर्ण माना गया है कि मानते थे जो इस क़िले पेर अदिकार रखे भी पशिचमी हिमालय के राज्यो का मालिक बन सकता ह

Kangra fort

माना ये जाता है कि पहाडों पर राज करना है तो कांगड़ा किले पे राजकरना आबश्यक है इस सेंटीमेंट को इतिहास में पढ़े तो जो बी हिन्दुस्तान में राज करने आये सब ने कांगड़ा पर आक्रमण किया कांगड़ा में इतनी बार आक्रमण हुआ है कि आप कट्टोचो का इतिहास पढ़े तो हर चार साल में हमने कोई न कोई युद्ध लड़े हुआ है

Kangra fort


Kangra fort | History


इस किले पर कब्ज़ा ओर ताकत हासिल करने के लालच में kangra fort ने कई किस्से रचे किस्से युद्ध के बलिदान के महत्ब काक्षाऔ के कहानियां प्यार की और साहस की ओर जाहर सी बात है कि जब ताकतबर लोग लालची हो जाते है तो कहानियां होती है युद्ध की तो हम बी kangra fort की कहानियो का सिलसिला युद्ध से ही शुरू करते है


Kangra fort



जहां अदुनिक इतिहास में सबसे महतबपुर्ण जिक्र kangra fort का मिलता है। 11शताब्दी में जब यहा आक्रमण किया महमूद गजनबी ने 1009 में महमूद गजनबी आक्रमण किया था कांगड़ा में ये पहली बार विदेसी सेना कांगड़ा किले के द्वार पर पहुंच गई थी उससे पहले जितने भी आक्रमण हुए थे वो कोई भी सेना कांगड़ा किले तक नही पहुँचि थी उस समय हमारे जो पूर्बज जो थे वो कुल्लू की तरफ लड़ाई में ब्यस्त थे तो सेना किले के अंडर नही थी तो बिना युद्ध किये महमूद गजनबी कांग्र किले में परबेश कर गया ओर वो अपने साथ ऊंट ओर गोड़े की पीठ पर बी न आ सके उतने सोना चांदी हिरे अपने राज्य में ले गया था


Kangra fort



Kangra fort का एक पुराना हिस्सा है जिसे दरसनी द्वार बोला जाता है ओर इसी रास्ते से महमूद गजनबी इस किले में गुसा था इसके बाद जो महतबपुर्ण घटना हुई वो हुई  तुगलक सासन में तब कांगड़ा औऱ दिल्ली में छोटी छोटी लड़ाईया चलती रहती थी तब तुगलक ने फैसला किया कि इन आक्रमण को बंद करने के लिये वो कांगड़ा को अपने बस में के कर लेगा ओर इस इरादे से उसने कांगड़ा में चढ़ाई कर दी ओर तब यहां लड़ा गया एक और युद्ध 14th शताब्दी में तुगलक ने कांगड़ा पर आक्रमण किया उसने काफी समय तक कांगड़ा किले तक डेरा डाला लेकिन फिर भी वो किले के अंदर नही पुहंच पाया


Kangra fort



कहा जाता है कि तुगलक किसी पहाड़ पर खड़ा होकर हमला करने का मुआयना कर रहा था तबी कटोच बंस के राजा अपने किले की छत पर मुआयना कर रहे थे ओर उन्होंने एक दूसरे को देखकर हाथ का इशारा किया इससे लड़ाई भही पर खत्म हो गयी तुगलक की एक इच्छा थी कि वो किले में जाने की और उसने अपने सिपाही किले में भेजे ओर इजाजत ली और उसके बाद यह युद्ध समाप्त हुआ  ओर फिर मिलने के बाद समजोते कि शर्त रखी।


कभी सुलह तो कभी जीत कांगड़ा और दिल्ली के बीच ये सिलसिला चलता ही रहता था फिर दिल्ली और हिन्दोस्तान पर हावी हुआ मुगल बादशाह और अकबर जैसा बड़ा बादशाह भी कांगड़ा पर कब्ज़ा नही कर सका उनके बाद आया जहाँगिर और जहाँगिर ने कांगड़ा फोर्ट पर  विजय पाने की ठान ली और इस इरादे से उसने कांगड़ा पर चढ़ाई कर दी और जब इतनी बड़ी सेना का सामना होना था तो बलिदान के किस्से बी तो बनने थे


Kangra fort



शनशाह अकबर जो मुगलो के सबसे बड़े बादशाह माने जाते है उन्होंने कांगड़ा में 52 बार हमला किया और 52 बार ही हारा है पर उनके बेटे जहांगीर ने हमला किया 14 महीने के लिए उसने कांगड़ा फोर्ट की घेराबंदी रखी ओर फिर ऐसा समय आया जब खाने को कुछ बी नही रहा तब कांगड़ा के राजपूत सिपाही थे उन्होंने दरबाजे खोल दिये ओर एक घमासान युद्ध हुआ जिसमे कहा जाता है बहुत लोगो की जान गई


उस समय एक ओर बलिदान हुआ जब पता चला कि कांगड़ा किल्ला हमारे पास नही रहेगा हम किल्ला हार जायँगे तो किले में जो बी औरते थी किले के अंडर एक तालाब है जिसका नाम कपूर सागर है तो ओरतो ने अपने पैर में पत्थर बांद के कपूर सागर में छलांग लगा दी
किले के पीछे एक पकडण्डी कपूर सागर की ओर जाती है भही कुआ जहां इस्तरीयो ने अपनी जान दी थी जब जहांगीर ने कांगड़ा पर आक्रमण किया था बिल्कुल समसान है ये जंगल से गिरी हुई ये जगह  में सिर्फ कीटाणु ओर पक्षिऔ की आबाज आती है फिर एक क्षण के लिए ऐसा लगता है कि भो उन इस्तरीयो की आखरी चीख है बलिदान के पहले की वो बलिदान वो भये उसकी आत्मा आज बी मौजूद है


जहांगीर के हमले के बाद जब जहांगीर ने कांगड़ा किले पे फतह कर ली थी उसने अपनी फतह को दरसाने के लिए पहले एक द्वार बनाया जिसका नाम जहांगीरी द्वार है वो आज भी है ओर एक उसने मस्ज़िद बनाई उसका आधा हिसा आज बी मौजूद है किले के अंडर वहां कहा जाता है कि पहले उसने एक गाय की बलि दी ओर उसके बाद ये मस्ज़िद बनाई 


जब मुगलो कि ताकत कम होने लगी तब कटोच बंस के सपुत्र ने फिर से अपने पूर्बजों की विरासत को पाने का सपना देखा उनका नाम था महाराजा संसार चंद कटोच ओर उनकी इस तीब्र महत्बकाक्षा के बलबूते पर रचा गया कांगड़ा का अगला इतिहास


जब कांगड़ा के किले ओर रियासत की बागडोर संसार चंद के हाथ मे आ गयी तो उसकी महत्बकाक्षा इतनी बढ़ गयी कि उसने आसपास के इलाकों को जितना शरू कर दिया ओर उन रियासतों के शासको ने गोरखों से मदद मांगी ओर सभी ने मिलकर कांगड़ा पर आक्रमण किया और चार बरस तक किले को घेर रखा उसका परिणाम ये हुआ कि किले में न तो खादय सामग्री पहुंच सकी ओर न ही बारूद न पहुंच सका अंत में राजा को बेस बदल के यंहा से भागना पड़ा

तब उसने सिख राजा रणजीत सिंग से सहायता मांगी ओर दोनों में समजोता हुआ 1809 ई में ये किल्ला महाराज रणजीत सिंग के हाथ मे चला गया

ओर फिर बारी आई अंग्रजो की ओर उस दौर में कई राजनीतिक और प्रसासनिक तब्दीलीया बी हुई पर उस दौर की एक मुख्य याद है एक अंग्रेज अफसर ओर कटोच राजकुमारी के बीच हुई प्रेम कहानी राजा अनिरुद्ध चंद राजा संसार चंद के बेटे थे वो अपने पूरे परिबार के साथ हरिद्वार में बसना चाहते थे रास्ते मे वो नदी पार कर रहे थे कुछ ठग लोगो ने उन पर आक्रमण किया ओर उनकी एक बेटी पानी मे गिर गयी ओर वो ठग के हाथ लग गयी लॉरेन्स नाम के एक अंग्रेज जो ब्रटिश सेना में ऑफिसर थे उन्होंने उनको बचाया ओर फिर उन दोनों के बीच पराम् हुआ क्योकि राजकुमारी इस अपहरण के बाद अपने घर नही जा सकती थी वो लॉरेंस के साथ इंग्लैंड चली गयी


1857 के बिदरौ की कहानियों यहाँ बी कई प्रचलित है जिममें से एक यहॉ के राजा परताप चंद कटोच की है ये यहाँ के लोगो को लेकर अंग्रेजों बाहर निकालने के लिए बिदरौ किया था ओर इसलिए अंग्रेजों ने अपना हैडक़वातर धर्मशाला से बदलकर कांगड़ा किले को बना दिया था क्योकि यही एक शक्तिशाली किला था जहां से सारे पहाड़ीक्षेत्र को नियंत्रण किया जा सकता था चलिए ये बात तो साफ है कि 1857 तक ये किल्ला बिल्कुल सही था उपयोग में था


कितने कमाल की बात है ना की हजारों सालों से ये एक ही जगह महाभारत से लेके महमूद से लेके जहाँगीर के दौर से लेकर अंग्रेजों के आने तक इतनी एहम रही क्या कुछ नही देखा होगा इस जगह ने ऐसी को सी कहानी होगी जो यह नही रची गयी तो फिर ऐसा क्या हुआ होगा कि यहाँ पर इतिहास बिल्कुल थम से गया लगता तो है यहाँ बड़ी तबाही मची होगी ।


4 अप्रैल 1905 ई को कांगड़ा क्षेत्र में एक भयानक भुकम्प आया था वो भारत आने बाले सबी भूकंपो से भयानक था इस भुकम्प ने कांगड़ा क्षेत्र बारी तबाही मचाई थी इसमे एक लाख इमारते गिर गयी थी 20000 लोग मारे गए थे ये भुकम्प 7.5 विक्टर सकेल का भुकम्प था इसने कांगड़ा किले को पूरी तरह से धबसत कर दिया था इमारते गिर गयी थी ये किला दोबारा दिख नही पाया


जो दीवारे हजारो सालो से आक्रमणों को नितबात सहती आयी वो बी इस भुकम्प के सामने टिक नही पायी हालाकि की बाद में दीवारों ओर दरबाजो की मरमत की गई फिर बी आज ये किल्ला खंडर ही है 


FAQ


कांगड़ा किला का मालिक कौन है?

महाभारत के अनुसार राजा सुशर्मा चंद्र को कांगड़ा किले का मालिक माना जाता है क्योंकि राजा सुशर्मा चंद्र ने ही किले की स्थापना की थी

Kangra का पुराना नाम क्या है?
कांगड़ा पहले त्रिगर्त के नाम से प्रसिद्ध था ओर कांगड़ा हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी रियासत है महाभारत के समय से ही इसकी स्थापना राजा सुशर्मा चंद्र ने की थी और भही इसके मालिक थे

कांगड़ा का राजा कौन था?
महाभारत के अनुसार राजा सुशर्मा चंद्र को कांगड़ा किले का मालिक माना जाता है ये भी कहा जाता है कि बाद में राजा हर्षवर्धन ने कांगड़ा राज्ये पर अपना कब्जा कर लिया था पर राजा संसार चंद ने अपने पूर्बजों के प्राचीन किले को सन 1789 बचा लिया था
















No comments

Powered by Blogger.